VDA के वीसी साहब…! ये घूसखोरी की देन नहीं तो और क्या है ? काली महल स्थित महज़ 4 फिट की गली में भवन संख्या सी0 4/155 G+3 कैसे बन गया ? आखिर बिल्डर शाहिद मौलाना से क्यों डरता है आपका विभाग ?

तारिक आज़मी
वाराणसी: वाराणसी विकास प्राधिकरण और अवैध निर्माण हेतु खामोश रजामंदी एक दुसरे की पूरक बनती जा रही है। करना कुछ ख़ास नही होता है, बस स्थानीय जेई और जोनल के साथ साथ सुपरवाईजर से विशेष अनुमति लेना होता है। शायद यह अनुमति टेबल के नीचे से तो कभी रास्ता चलते बाइक पर मिलने वाले लिफ़ाफ़े में मौजूद रंगीन कागज़ दे देते है। फिर तो नियम, कायदा कानून ताख पर रख कर जो करना है कर डालो।

अब आप सोच सकते है कि कुल 4 स्लैब ढाला गया, पूरा ढाचा भवन का बनकर खड़ा हो गया और इसके बावजूद भी अगर विकास प्राधिकरण के जोनल, जेई और सुपरवाईजर कहे कि उनके संज्ञान में नहीं है तो ज़रूर इसके संज्ञान को न लेने के लिए अच्छी और आरामदायक हरे कागजों की मोटी पट्टी आँखों पर बाँधी गई होगी। साथ ही इस अवैध निर्माण का कही घूमते फिरते संज्ञान विकास प्राधिकरण के लोग न ले ले, इसके लिए आरामदायक तकिया का निर्माण भी शायद नोटों से किया गया होगा। अन्यथा किसी गरीब के टपक रहे छाजन की मरमम्त तक पर रोकने वाला वाराणसी विकास प्राधिकरण आखिर इतने बड़े अवैध निर्माण को कैसे नहीं रोक देता ?

समझ में नहीं आ सकने वाली बात सिर्फ एक है कि आखिर इस शातिर बिल्डर शाहिद मौलाना से विभाग इतना डरा क्यों रहता है? आखिर कितना चढ़ाव ये शातिर बिल्डर विभाग को चढ़ा देता है कि इसको खुली छुट ऐसे अवैध निर्माण की मिल जाती है। इसके नाम पर अगर कोई शिकायत आती है तो विभागीय सूत्र बताते है कि सिर्फ कागज़ी घोड़े ही दौडाए जाते है। एक नहीं इसके द्वारा शहर के अन्दर सकरी गलियों में कई दर्जन ऐसे अवैध निर्माण करवाए जा चुके है। मगर विभाग आज तक इसके ऊपर कोई ठोस कार्यवाई नही कर सका। शायद ये बिल्डर शाहिद मौलाना की दहशत ही होगी जो इसके अवैध निर्माण पर विभाग खुली छुट दे रखे है।
अब सबसे बड़ी देखने वाली बात ये होगी कि इस शातिर बिल्डर शाहिद मौलाना से अपनी दोस्ती निभा रहे स्थानीय जेई साहब कोई कार्यवाही करेगे या फिर थोडा बहुत समझा कर कि ‘मौलाना थोडा ठंडा करके खाओ’ कहकर ही मामले को ठन्डे बस्ते में दफ़न कर दिया जायेगा। वैसे बिल्डर शातिर तो बहुत है और इसकी शातिराना चाल से सभी डरते है। शायद स्थानीय जेई भी इसी शातिराना चाल से डर जाते हो कि जाने दो।











