तारिक आज़मी की मोरबतियाँ – आदमपुर थानेदार साहब, इस क्षेत्र के आम नागरिको को भी सांस लेने का अधिकार है

तारिक आज़मी

वैसे तो हमको बकबक करने की आदत है। प्रशासन भी समझता है कि ससुरा खाली बकर बकर किया करता है। वैसे समझते तो वो भी है कि मेरी बकरबकर में भी काम की बात होती है। तब्बे तो पडोसी काका कहिन रहा कि तोहार बतिया इज राईट। मगर का करे साहब इस राईट को लेफ्ट समझने वालो की भी कमी कौन सा संसार में है। अगर बोलो तो बोलेगा कि बोलता है। आरोप तो प्रशासन पर लगाना फैशन सा हो गया है। आपकी नेतागिरी और क्षेत्र की मठाधीशी तब तक नही चमकती जब तक आप पुलिस प्रशासन और मीडिया पर चाय पान की दूकान के सामने पान की गिलौरी घुलाते हुवे दो चार चिरपरिचित शब्दों का प्रयोग करते हुवे पुलिस को घुसखोर और मीडिया को बिकाऊ और दलाल की संज्ञा से न नवाज़ दे तब तक आपकी नेतागिरी कहा पूरी हो पाएगी।

भले आप पुरे जीवन अपने नुक्कड़ की गली पर पड़ा कूड़ा आप समय से न उठावा सके हो, मगर आप खुद की राजनितिक आवाज़ बुलंद रखियेगा। देखिये न कभी स्थानीय निकाय चुनाव हो तो आप सैकड़ो वोटो के ठेकेदार बन जायेगे और कहेगे जिसको चाहे जीता दे। भले से खुद चुनाव लड़ने पर अपने घर का भी वोट न मिल पाए मगर नेतागिरी टाईट ज़रूर रखियेगा।

छोड़े साहब ये तो हमारी बकर बकर है क्या करू ओ साहब हम है आदत से मजबूर। अब का बताये लोग हमको छेड़ देते है तो हम लिख लेते है। अब जो काम हमको आता है वही करेगे न थानेदार साहब। अब कल की ही बात ले। एक क्षेत्रीय नेता बनने वाले साहब हमको छेड़ बैठे। कहने लगे, पुलिस अपना फायदा देखती है और मीडिया तो बिकाऊ हो गई है। अब हमको भी नही पता रहा कि कौन मीडिया वाला उनकी चड्ढी नोच कर भाग गये है। फिर भी हम मूकदर्शक होकर उनकी समस्या सुना। समस्या देखे साहब तो गंभीर तो है। मगर एक शब्द मैं स्पष्ट शब्दों में कह दू कि पुलिस तब तक कोई कार्यवाही नही करती जब तक उस सम्बन्ध में कोई शिकायत नही मिलती। आपके साथ कुछ गलत हो रहा है और आप खुद गलत देख रहे है, सुन रहे हैं, झेल रहे है। मगर शिकायत दर्ज नही करवाते है। क्यों भाई ? आप खुद दिक्कत में है शिकायत क्या आपका पडोसी करवाएगा ? मगर आप तो मुहल्लेदारी देखते है। मगर गलिया मीडिया को देते है। चलिए आपकी समस्या मैं खुद उठा देता हु। आदमपुर थाना क्षेत्र के कोइला बाज़ार स्थित दो स्थानों पर पीतल पर रंगाई और सफाई का काम होता है। नियमो के अनुसार ये काम जो केमिकल से होता है। इसके कारण क्षेत्र में सांस लेना दुश्वार है, लोग परेशान है मगर कोई आवाज़ नही उठा सकता है।

क्या होता है ये पीतल पर रंगाई और सफाई का काम

पहले ये काम भट्टी पर पीतल को गर्म करके होता था। पीतल को बड़ी भट्टी पर गर्म किया जाता था। उसके बाद उसको हलके तेजाबी पानी में धोया जाता था। इसके बाद पीतल साफ़ हो जाता था। मगर समय के साथ आये बदलाव ने इस काम को भी बदल दिया। अब इसका पूरा काम केमिकल से होता है। केमिकल भी कोई हल्का फुल्का नही। केमिकल का ये तेज़ाब इतना खतरनाक होता है कि अगर पत्थर पर डाल दिया जाए तो वह भी गल सकता है। इस काम में प्रयोग में लाया जाने वाला केमिकल नाईट्रिक एसिड नाम से जाना जाता है। ये एक खतरनाक तेजाब होता है। इसके संपर्क में आने के बाद धातु से धुआ उठता है। ये धुआ ज़हरीला होता है और आम जन के लिये नुकसानदेह होता है।

क्या होता है आम नागरिक पर असर

इस धुवे के चपेट में अक्सर आने वाले लोगो के फेफड़ो में फाईब्रोसिस बनना शुरू हो जाता है। इस वजह से फेफड़े मोटे हो जाते है। मोटे होने के कारण फेफड़े सांस लेने में कमज़ोर होने लगते है। फईब्रोसिस के कारण फेफड़े आक्सीज़न कम पञ्च करते है और इसके कारण धीरे धीरे फेफड़े काम करना बंद कर देते है। जहा जहा इस प्रकार के काम होते है वहा आस पास की महिलाओं के फेफड़ो की अगर पूरी जाँच करवाया जाए तो किसी भी महिला का फेफड़ा 70% से अधिक काम नही करता होगा। इस बिमारी का आखरी अंजाम मौत होती है जो काफी दर्दनाक हो सकती है। मरीज़ को सांस लेने में काफी दिक्कत आती है। अस्थमा पम्प के सहारे ज़िन्दगी कटने लगती है। थोडा और असर देखे तो मरीज़ पैरालाईज़ भी हो सकता है।

क्या कहते है नियम

नियमो को अगर देखे तो रिहायशी इलाको में ये काम पूर्णतः प्रतिबंधित है। वर्ष 1999 में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जज आरके अभिचंद्नानी ने 13 दिसंबर 1999 में एक पिटीशन डीएस राणा वगैरह बनाम अहमदाबाद मुनिसिपल कारपोरेशन के मामले में फैसला सुनाते हुवे कहा था कि ये काम रिहायशी इलाको में करने वाले नहीं है। इस काम हेतु पूरी सुरक्षा के साथ कमर्शियल एरिया में इन काम को करने वाले कारखानों को स्थानांतरित किया जाए। इस काम में कोर्ट ने जमकर प्रदुषण बोर्ड को भी लताड़ लगाया था। इसके बाद देश भर में पीतल रंगाई सफाई। बुलानारिज़ फैक्ट्री के लाइसेंसों को रद्द कर दिया था। मगर हकीकत ये भी है कि आज भी ये काम लगभग हर शहर के रिहायशी इलाको में चोरी छुपे चलते है। अगर चर्चाओ को आधार माने तो प्रदुषण बोर्ड इसके लिये बढ़िया सुविधा शुल्क या तो लेता है अथवा फिर रिवाल्विंग चेयर पर बैठ कर सिर्फ कुर्सियों पर झूमते हुवे मस्ती के साथ तनख्वाह ले रहा है। काम का क्या है ?

क्या कर सकती है स्थानीय पुलिस

ऐसे कारखानों को चलाने वाले लोगो के खिलाफ पुलिस कड़ी कार्यवाही कर सकती है। उनके कारखानों को सील किया जा सकता है। बीट सिपाही इसके ऊपर बीट नोट करवा कर बाद में विवेचक द्वारा 7सी में मुक़दमे भी पंजीकृत कर सकता है। विवेचक को इसके लिये स्थानीय जनता का बयान मांगने पर भी मिल सकता है क्योकि दिक्कत तो उनको रहती है। मगर शांति व्यवस्था से शुरू होकर पुलिस का काम लगातार बढ़ता जा रहा है। शांति व्यवस्था, अपराध नियंत्रण, परिक्षा, सड़क जाम, नक़ल रोकना, वीआइपी की सुरक्षा, त्यौहार की ड्यूटी इत्यादि के बीच हकीकत में पुलिस को वक्त कहा मिल पाता है। फिर भी अगर लिखित शिकायत मिले तो पुलिस कार्यवाही से पीछे नही हटेगी ये बात तो सच है। मगर कई बार देखा गया है कि पुलिस प्रदुषण बोर्ड का मामला कहकर इसको टाल भी देती है। मगर हकीकत तो ये भी है कि पुलिस कार्यवाही चाहे तो कर सकती है क्योकि आम नागरिको की सुरक्षा इसमें दाव पर लगी हुई रहती है।

कहा हो रहा है ये गोरखधंधा

आदमपुर थाना क्षेत्र के कोयला बाज़ार इलाके में चौराहे से दस कदम की दुरी पर चौहट्टे वाले मार्ग पर सड़क से सटे इस प्रकार का एक मौत का कारखाना काम करता है। इसके ऊपर एक सत्तारूढ़ दल के नेता का संरक्षण होने के कारण इनको थोडा बल मिला है। पास ही रहने वाले पूर्व सेक्टर वार्डेन और जेल विजिटर ने तो हमसे यहाँ तक कहा कि मौत के मुह में हम खड़े है। कभी कोई गवाही की ज़रूरत होती तो देते। आपत्ति करने पर भी कोई मानता नही है। आज हम खुद अपनी सेहत से परेशान है। देख सकते है फालिज का असर हो चूका है।

वही इससे चंद कदम की दुरी पर नचनी कुआ इलाके में मन्नू का कारखाना है। इनके द्वारा भी इसी तरह से पीतल की रंगाई और सफाई का कारखाना चलता है। साहब बहुत बड़े पॉवरफुल अपने आप को बताते है और ज़रूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री तक से सीधे बात करने की बात करते है। मौत की साँसों का कारोबार करने वाला ये कारोबारी तो खुल्लम खुल्ला बोला कि हम सबको मैनेज करते है।

अब देखा होगा कि नवागंतुक थाना प्रभारी आशुतोष ओझा जो वास्तव में एक तेज़ तर्रार और स्पष्टवादी इस्पेक्टर है। मैं उनको कई सालो से जानता हु और उनकी कार्यशैली भी देखा है। कोई शक नहीं कि एक संभ्रांत और समझदार इस्पेक्टर की सब खुबिया उनके अन्दर है, साथ ही पुलिस चौकी मछोदरी का नया नया प्रभार पाए राजकुमार जो पूर्व में इसी थाना क्षेत्र में कई सफलता हासिल कर चुके है इन मौत के कारखानों पर कैसे नियंत्रण करते है। या फिर आम तौर पर ये भी ठन्डे बसते की शोभा बढ़ाएगी क्योकि सामने होली का त्यौहार भी तो है।

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