बसपा नेता रामबिहारी चौबे हत्याकांड – नहीं कम हुई भाजपा विधायक सुशील सिंह की मुश्किलें, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जाँच के लिया एसआईटी का किया गठन

आफताब फारुकी

नई दिल्ली. वर्ष 2015 में बसपा नेता रामबिहारी चौबे की वाराणसी जनपद के चौबेपुर थाना क्षेत्र में हुई हत्या के में नामज़द भाजपा विधायक सुशील सिंह की मुश्किलें कम होने का नाम नही ले रही है। सुप्रीम कोर्ट भाजपा विधायक सुशील सिंह को वाराणसी पुलिस द्वारा दिली क्लीन चित को दरकिनार करते हुवे मामले की जाँच के लिए एक एसआईटी का गठन कर दिया है।

आज सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रोहिंटन नरीमन जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ बसपा नेता की हुई हत्या के मामले में पुलिस द्वारा चंदौली के सैयदराजा के भाजपा विधायक सुशील सिंह को लेकर दायर की गई क्लोजर रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए फिर से जांच करने का आदेश दिया है। इतना ही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने इस जांच की निगरानी का भी फैसला किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जांच को दिखावा और सच्चाई को छुपाने वाला करार दिया है। इस प्रकरण की जाँच के लिए अदालत ने एक एसआईटी का गठन किया है जिसके मुखिया आईपीएस सत्यार्थ अनुज पंकज होंगे। साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट इस जाँच की निगरानी करेगी। पीठ ने एसआईटी को दो महीने के भीतर जांच का काम पूरा करने के लिए कहा है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पंकज को अपने पसंद के अधिकारियों को एसआईटी में शामिल करने की छूट दी गई है।

पीठ ने पाया कि किस तरीके से मृतक के बेटे अमरनाथ चौबे द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के बाद जल्दबाजी में भाजपा विधायक सिंह को लेकर क्लोजर रिपोर्ट दायर की गई। बसपा नेता के बेटे ने याचिका दायर कर जांच में खामियों का जिक्र किया था। पीठ ने पाया कि चार दिसंबर, 2015 को एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में आठ जांच अधिकारियों को बदला गया था। काफी समय तक जांच लंबित थी और सात सितंबर 2018 में अदालत द्वारा नोटिस किए जाने के बाद नवंबर 2019 में सुशील सिंह के खिलाफ मामले को बंद कर दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह जरूर है कि जांच का काम पुलिस का है, लेकिन अगर पुलिस कानून के अनुसार अपना वैधानिक कर्तव्य नहीं निभाती है तो अदालत अपने कर्तव्यों का पालन करने से पीछे नहीं हट सकती। अदालत का एक संवैधानिक दायित्व है कि वह सुनिश्चित करे कि जांच कानून के अनुसार की जाए। एक निष्पक्ष जांच भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीवन का अधिकार) का एक आवश्यक तत्व है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, जांच एक दिखावा प्रतीत हो रही है। इस मामले में जांच से अधिक उसको छिपाने के कोशिश की गई। हम यह कहने को विवश हैं कि जांच और क्लोजर रिपोर्ट की प्रवृत्ति गैरजिम्मेदाराना और आनन-फानन वाली है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस का प्राथमिक कर्तव्य है कि वह एक संज्ञेय अपराध के जानकारी की रिपोर्ट प्राप्त करने पर जांच करे। यह दंड प्रक्रिया संहिता के तहत एक संवैधानिक कर्तव्य है। इसके अलावा यह संवैधानिक दायित्व भी है कि समाज में शांति सुनिश्चित की जाए और कानून के शासन स्थापित रहे।

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