उत्तराखंड के उत्तर काशी में निर्माणाधीन सुरंग धसने से अन्दर फंसे 41 मजदूरों हेतु 8वे दिन भी जारी रेस्क्यू आपरेशन, विज्ञानं के साथ भगवान का भी सहारा, नितिन गडकरी ने लिया मौके पर जाकर हालात का जायजा

तारिक़ आज़मी

डेस्क: उत्तराखंड के उत्तर काशी में निर्माणाधीन सुरंग के बैठने से अन्दर फंसे 41 मजदूरों के रेस्क्यू काम आज रविवार को 8वे दिन भी जारी है। अभी तक मजदूरों को बाहर निकालने में कोई सफलता नही मिली है। इस बीच आज केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी और उत्तराखंड के सीएम पुष्कर सिंह धामी उत्तरकाशी सुरंग में चल रहे राहत और बचाव कार्य का निरीक्षण करने पहुंचे।उन्होंने यहाँ मौजूद सुरंग में फँसे मज़दूरों के परिजनों से मुलाक़ात की।

दूसरी तरफ राहत और बचाव कार्य के दरमियान विज्ञान और भगवान दोनों का सहारा अब लिया जा रहा है। दरअसल, इस हादसे के बाद ग्रामीणों का मानना है कि सुरंग ढहने के पीछे स्थानीय देवता बाबा बौखनाग का प्रकोप है। ग्रामीणों ने कहा कि बाबा बौखनाग के क्रोध के कारण सुरंग धसक गई, क्योंकि उनका मंदिर निर्माण कार्य के चलते ध्वस्त कर दिया गया था। ऐसे में भगवान का भी सहारा दो दिनों पहले लिया गया और क्रेन की मदद से एक पुजारी ने सुरंग के मुहाने पर झंडा लगाया और नारियल फोड़ा। रेस्क्यू के 7वें दिन सुरंग के बाहर एक मंदिर स्थापित किया गया है। एक तरफ मशीनों को अंदर ले जाया जा रहा है तो दूसरी तरफ जिस तरफ मंदिर स्थापित है। सुरंग के मुहाने पर मंदिर की स्थापना हो रही है। पूजा-अर्चना की जा रही है।

सुरंग के अन्दर फंसे मजदूरों के परिजनों से मुलाकात करने के बाद मीडिया से बात करते हुवे नितिन गडकरी ने पत्रकारों कहा, ‘हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है कि किसी भी तरह से फँसे लोगों की जान बचाएं। यहाँ जो भी रेस्क्यू कार्य चल रहा है, मैंने और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने उसका प्रेजेंटेशन और पूरी रिपोर्ट ली है। ऑगर मशीन टनल के मलबे में ड्रिल करने का अच्छा काम कर थी, अचानक ड्रिलिंग के दौरान सख़्त मेटिरीयल आने के कारण चिंता का विषय हुआ, लेकिन उसका भी हल ढूँढ लिया गया है।’

गडकरी ने कहा, ‘ऑगर मशीन के अमेरिका में जो एक्सपर्ट हैं, उनसे भी हमने सलाह की है और हम उनके संपर्क में हैं। स्वाभाविक रूप से दिक्कतें बहुत आ रही हैं, इससे निपटने के लिए अब 6 विकल्पों पर काम किया ज़ा रहा है। मजदूरों को सुरक्षित निकालने के लिए सुरंग के दाएं और बाएं हिस्से से इस्केप टनल बनाने के साथ ही सुरंग की ऊपर पहाड़ी से वर्टिकल ड्रिलिंग करने के विकल्प पर अमल शुरू हो गया है।’

गडकरी ने कहा कि ‘इस काम में भारत सरकार के कई डिपार्टमेंट, ओएनजीसी से लेकर रेलवे तक के अलग-अलग एक्सपर्ट लोगों की मदद ली गई है। प्राइवेट सेक्टर के टनल में काम करने वाले एक्सपर्टस को भी यहाँ बुलाया गया है। खाने के लिए एक पाइप लाइन ओर पहुँचाने का काम किया गया है, जिससे फँसे लोगों को खाने की दिक्कत ना हो।’

मगर इस सवाल का जवाब अभी तक न कर्यदाई संस्था अथवा न ही सरकार के तरफ से मिला है कि आखिर इस प्रकार की लापरवाही कैसे हुई? दरअसल सुरंग बनाने के नियमो पर ध्यान दे तो सुरंग जितनी बनती रहती है उतनी पाइप अन्दर डाली जाती रहती है। यह पाइप डालने का मकसद होता है कि किसी घटना दुर्घटना की स्थिति में अन्दर से मजदूर इसी पाइप के माध्यम से बाहर निकल आये। यहाँ अभी तक एक अनुतरित प्रश्न ये है कि वह पाइप कहा है? क्या वह डाला ही नही गया अथवा निकाल लिया गया? अगर डाला गया था और निकाल लिया गया तो आखिर क्यों अधूरे कार्य के बीच उसको निकाला गया। यानी कार्यदाई संस्था के तरफ से मजदूर सुरक्षा हेतु पूरी व्यवस्था नही हु थी।

बहरहाल मजदूर इतने दिनों से सुरंग में फंसे हैं, वो किस हाल में हैं, उनकी मानसिक स्थिति कैसी है और उनके जेहन में कितना खौफ पसरा हुआ है? कुछ कहा नहीं जा सकता, मगर चिकित्सकों ने यह सलाह दी है कि उत्तराखंड में निर्माणाधीन सुरंग के एक हिस्से के ढह जाने से उसमें फंसे श्रमिकों को बाहर निकाले जाने के बाद उनकी शारीरिक फिटनेस की जांच करने के साथ ही उन्हें मनोवैज्ञानिक परीक्षण और परामर्श से गुजरना होगा।

जिन श्रमिकों को मधुमेह या हृदय रोग जैसी पुरानी स्वास्थ्य समस्याएं हैं, उनके लिए स्थिति खराब हो सकती है। उन्होंने कहा कि हालांकि भोजन और पानी की नियमित आपूर्ति उन्हें शारीरिक रूप से ठीक बनाए रख सकती है और निर्जलीकरण को रोक सकती है। सुरंग से निकाले जाने पर, श्रमिकों की निर्जलीकरण या हाइपोथर्मिया की जांच करने की आवश्यकता होगी, जिसके लिए उन्हें उपचार की आवश्यकता हो सकती है। इस घटना से उन्हें मानसिक आघात पहुंचने की अत्यधिक आशंका है, जिसके लिए श्रमिकों को शारीरिक फिटनेस परीक्षण के साथ ही मनोवैज्ञानिक परीक्षण और परामर्श से गुजरना होगा।

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