कोविड-19 के नियमो का पालन करते हुए काली महल में इमाम रजा की शहादत पर उठा कदीमी अंगूरी ताबूत

शाहीन बनारसी / ए0 जावेद 

वाराणसी। वाराणसी के काली महल में आज इमाम रज़ा की शाहदत में काली महल की मस्जिद में इमाम रजा का ताबूत उठाया गया। बताया जाता है कि यह ताबूत पिछले 38 सालों से ख्वातीन उठा रही है। यहां ख्वातीन के मायने महिलाओं से है। इस ताबूत को अंगूरों से सजाया जाता है। बताते चले कि यह ताबूत हर साल इसलिए उठाया जाता है क्योंकि 204 हिजरी में ईरान के खुरासान शहर में शिया मुसलमानों के आठवें इमाम अली रजा को एक बादशाह ने अंगूरों में जहर मिलाकर दिया था। यह ताबूत हर साल ढेर संख्या की महिलाओं द्वारा उठाया जाता है, मगर कोविड-19 के नियमो का पालन करते हुए पिछले 2 वर्षों से यह ताबूत बहुत कम संख्या में ख्वातीन की उपस्थिति में उठाया जा रहा है। लोगो का कहना है कि कोविड की वजह से इस ताबूत की कई परंपराएं ऐसी है जो नहीं मनाई गई है।

आयोजकों और अज़ादारो ने एक समय पर भीड़ न इकठ्ठा हो और भीड़ को कम करने के लिए इमाम का गम दिन भर मनाया। अंगूरी ताबूत पर नजर दिन में ही हो गई थी, जिसके बाद अज़दारो ने बारी बारी से ताबूत की ज़ियारत की। मुख्य मजलिस भी कम लोगों की संख्या में हुई। कार्यक्रम में मजलिस को खिताब नरजिस नकवी कानपुर ने दिया, और माह तलत ने हदीस ए किसा पढ़ी, कनीज़ फातिमा ने कुराने पाक की तिलावत की, नौशीन फातिमा ने मुनाजात पढ़ा, महरीन और ताज़िन ने सोज़ पढ़ा और इसके बाद इमरोज़ फातिमा और शिखा ने नौहा पढ़ा। इस कार्यक्रम में उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की बेटी ज़रीना फातिमा ने भी नौहा पढ़ा।

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