महँगी होती सब्जी और तारिक़ आज़मी की मोरबतियाँ : पहले पसेरी अब पाव भर आत है, महंगाई डायन बन कमाई खाय जात है

तारिक़ आज़मी

सुबह सुबह किचेन में काका और काकी के वाक युद्ध ने आँखों की नींद ही नही उड़ाई बल्कि आने वाले तूफ़ान की चेतावनी भी दे डाली। हमने बिस्तर को तत्काल त्यागपत्र देना उचित समझा और बिना बेड टी का स्वाद चखे सीधे बाथरूम में घुस जाना ही अपने लिए हितकर समझा। किचेन से आती अशआरो की जंग की आवाज़ धीमी होने लगी थी। हम भी दिन की शुरुआत करने के लिए गुस्ल से फारिग हो चुके थे। कपडे बदन पर डाल अल्लाह पीर करता हुआ किचेन में दाखिल हुआ। काकी ने हमको देखते ही मुस्कुरा कर चाय थमा दिया। हम भी धीरे से चाय की कप लेकर चुस्की लेने लगे।

थोड़ी देर में माजरा समझ आ चूका था कि काकी ने सब्जी मंगवाई थी और काका ने पसेरी के बजाये आलू कल एक किलो लिया था। बस काकी के अशआर वाली जुबां से अशआरो की तरकश खीच चुकी थी। हमने धीमे से काकी से सवाल कर डाला, काकी क्या हुआ ? धम्म से करके काकी ने एक बड़ा वाला भारी भरकम शेर धर मारा और कहा “कुछ नही बेटा, तमीज-ए-नदारद, कमंद-ए-हवा, मगाया कढाई तो लाये तवा।” काका ने भी तुरंत अशआरी जुबां में जवाब देते हुवे कहा कि “वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं एतबार न करता तो और क्या करता?” दोनों तरफ से चलती शेर-ओ-शायरी की जंग ने सुबह का बढ़िया मनोरंजन करवा दिया था। मैंने काकी से कहा कि काकी आज मैं जा रहा हु सब्जी लेने। आप अपनी तलवारे और भी धार देकर रखे।

हाथो में सब्जी का झोला लिए निकल पड़ा। जुम्मन मिया की दूकान पास में ही है। उनकी दूकान पर ताज़ी सब्जी मुनासिब दाम में मिल जाती है। अभी घर से निकला ही था कि सामने से शाहीन बनारसी और ए जावेद की आमद हो चुकी थी। मैंने कहा “अभी ऑफिस न खोलना, ऊपर काका काकी की जंग चल रही है।” दोनों ने धीरे से सरक लेना ही मुनासिब समझा, दरअसल गरीब किस्म का सम्पादक हु। ऊपर मकान नीचे दूकान के तर्ज पर खुद का आफिस है। घर के नीचे ऑफिस होने के वजह से कभी काका काकी की जंग चलती है और मेरे ऊपर बिजली नही चमकी तो फिर जावेद मिया और शाहीन बनारसी की शामत आती है। काका आ धमकते है और अपने और काकी के शेर में वज़न किस्मे है पूछने लगते है। सबसे बड़ी मुश्किल ये कि काका को अपनी बुराई पसंद नही और उनकी मेहरारू के कोई बुरा कहे तो उनको गुस्सा आता है। ऐसी गाज शाहीन बनारसी और ए जावेद कई बार झेल चुके है।

दोनों को शेर भले न समझ आये मगर काका की बात पर वाह ज़रूर कह देते है। मुश्किल तो तब बढ़ जाती है जब काका शेर का मायने पूछने लगते है। बहरहाल, एखलाक की चाय हम लोगो ने पी लिया। एखलाक मिया कहते है कि जब भी गुजरो चाय पीकर जाओ। चाय पीकर हम लोग जुम्मन मिया के दूकान पर पहुच चुके थे। मेरे पेट में काका के मुताल्लिक एक सवाल बड़ी जोर से उछल रहा था। आप सही समझ रहे है कि सवाल दिमाग में आता है तो पेट में कैसे उछल रहा है। असल में काका के मुताल्लिक सवालो का ताल्लुक अक्सर पेट से होता है। तो सवाल भी पेट में ही उछलेगा। सवाल ये था कि काका सब्जियों को पसेरी के भाव लेते है ख़ास तौर पर आलू, फिर वो एक किलो आलू कैसे लेकर गए थे।

जुम्मन मिया से सलाम दुआ करने के बाद सब्जियों का दाम पूछना शुरू कर दिया। आप गौर करे जो दाम उन्होंने हमको बताया (अमूमन जुम्मन मिया मुझको आलू और प्याज के दाम पसेरी (पांच किलो) में बताते है?। जुम्मन मिया ने दाम बताना शुरू किया। कहा आलू नया है 45 रुपया किलो, भिन्डी 10 रुपया पाव, सोआ 20 रुपया का 100 ग्राम, मेथी 15 रुपया पाव, धनिया 20 रुपया का 100 ग्राम, पालक 15 रुपया पाव, बैगन भी भैया 10 रुपया पाव लग जायेगा और टमाटर आपको 20 रुपया पाव पड़ेगा।

दाम सुनकर हमारे होश फाख्ता हो चुके थे। हमने पूछा जुम्मन मिया आप हमेशा मुझको आलू का दाम पसेरी में बताते थे और बकिया सब्जियों का भाव मुझे किलो में। इस बार आप दाम किलो और ग्राम में बता रहे है। जुम्मन मिया ने अपनी चिर परिचित मुस्कान के साथ हमसे कहा। भैया जी अब मैं आपसे कहू सोआ और धनिया 200 रुपया किलो, आलू 225 रुपया पसेरी है। तो ग्राहक को दाम सुन कर होश फाख्ता हो जाते है और हमारे कहने में ही तोते उड जाते है। सब्जियों के दाम में आग लगी हुई है। गरीबो की थाली से सब्जियां कम होती जा रही है। समझ में नही आता है कि गरीब आखिर खाए तो क्या खाए। एक दिन में आलू कम से कम एक परिवार में 1 किलो खर्च हो जाता है। एक दिन की सब्जी 150 रुपयों की पड़ रही है। सोचे गरीब कैसे जिये। क्या करे, क्या खाए ? जुम्मन मिया की तक़रीर जारी रहती तभी मैंने तुरंत कहा अमा जुम्मन मिया एक काम करो।

जुम्मन मिया बोले कि हाँ भैया जी बताये क्या करना है। 2 किलो आलू, आधा किलो टमाटर, आधा किलो साग, एक पाँव टमाटर धनिया और सोवा मिला कर एक पाँव कर देना और थोडा मिर्चा डाल देना। भिन्डी भी एक किलो डाल देना और हाँ कद्दू जो 40 रुपया किलो बताया था उसको भी एक किलो दे देना। हाँ एक बात और, तक़रीर बढ़िया करते हो जुम्मन मिया, इस बार चुनाव लड़ जाओ सभासद तो बन ही जाओगे। कहकर मैंने सब्जी लेने में खुद का ध्यान लगा दिया। इधर जावेद मिया और शाहीन बनारसी को ज़ोरदार ठहाका छुट पड़ा था। अब किचेन में हंसी का पात्र मैं बनने वाला था। इसी सोच में मेरे कदम घर के तरफ बढ़ चुके थे। घर पंहुचा और धीरे से बावर्चीखाने में सब्जी का झोला धर कर मैं निकल लिया। अमूमन सब्जी लाने के बाद मैं बावर्चीखाने में एक कप ज़बरदस्त चाय ज़रूर पीता था।

Tariq Azmi
Chief Editor
PNN24 News

सामान लाने के बाद वर्ल्ड कप जीतने जैसी फीलिंग आ जाती है। मगर इस बार ऐसा लग रहा था कि जैसे पहली ही बाल पर एलबीडब्लू घोषित हो गया हु। सच में सब्जियों के दाम ने होश फाख्ता कर रखे है। मैंने एक सिंपल कैलकुलेशन किया तो समझ में आया कि घर में बनी सब्जी एक इंसान के थाली में 24-25 रुपयों की पड़ रही है। 5 लोगो के परिवार में एक दिन की कम से कम सब्जी 125 की पड़ ही जाएगी। महंगाई की रोकेट पर बैठ कर वर्ल्ड रिकार्ड बनाने के लिए निकला सरसों तेल सब्जियों में कम होता जा रहा है। बेशक मुट्ठी भर छाछ जैसे सब्जियां लेने के लिए मुट्ठी भर पैसे खर्च हो जा रहे है।

हमारी निष्पक्ष पत्रकारिता को कॉर्पोरेट के दबाव से मुक्त रखने के लिए आप आर्थिक सहयोग यदि करना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें


Welcome to the emerging digital Banaras First : Omni Chanel-E Commerce Sale पापा हैं तो होइए जायेगा..

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *